रविंद्र सिंह भाटी के तेज़ भाषण कैलाश के मंत्री पद -दोनों पर कैसे भारी पड़ी उम्मेदा राम बेनीवाल की सादगी
मंत्री कैलाश चौधरी के प्रति मतदाताओं की उदासीनता
भाजपा द्वारा टिकट घोषित करते ही भाजपा के कोर वोटर्स में मायूसी छा गई थी। मतदाता इस बार टिकट में बदलाव चाह रहा था। इसको मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओ ने भी बाद में भाप लिया था लेकिन उनकी हर संभव प्रयास के बावजूद भी वो उदासीन मतदाताओं को रीझा नहीं पाए।
हरीश चौधरी की रणनीति और हेमा राम चौधरी अनुभव और उमेद राम बेनीवाल की सरल छवि एक साथ काम करना ही सबसे बड़ा फैक्टर बनाकर सामने आया
उम्मेदाराम को कांग्रेस में शामिल करवा उन्हें टिकट दिलवाने के पीछे हरीश चौधरी का ही हाथ थाउम्मेदाराम की जीत में ही हरीश की जीत थी। दशक से हारी हुई इस लोकसभा सीट को जीतने के लिए जरुरत थी एक वरिष्ठ छत्तीस कौम के नेता के मार्गदर्शन की ,हेमाराम चौधरी से मिले सहयोग से इनकी यह जरुरत पूरी हो गयी । हेमाराम का उम्र के इस पड़ाव में जोश देख हर कांग्रेस कार्यकर्त्ता के अंदर नई ऊर्जा का संचार हुआ। बेनीवाल के हेमाराम राइट और हरीश लेफ्ट हैंड बनकर उनकी नैया को पार लगाया।
मोदी फैक्टर का नहीं चलना भी एक विषय बन गया केंद्रीय मंत्री रहते हुए भी पार्टी को जीता नही सके केल्लास चौधरी
रविंद्र सिंह भाटी की बाड़मेर से लेकर दिल्ली तक अपनी एक अलग छवि हैं। उनके भाषणों में तरुणाई का जोश दिखता हैं जो युवा मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित भी करता हैं। बीजेपी और मोदी के कोर वोटर्स ने भाटी को खूब बढ़ चढ़ कर वोट्स दिए ,अब इन वोटर्स के अलावा भाटी को जीतने के लिए जरुरत थी एसी और अल्पसंख्यंक वोट्स की। कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ नेता अमीन खान का साथ होने के बावजूद भी भाटी अल्पसंख्यक वोटो में ज्यादा सेंधमारी नहीं कर पाए। रही बात एसी वोट्स की तो वो कोजाराम प्रकरण को लेकर एसी मुख्यतः मेघवाल समाज के लोग काफी नाराज थे,उनका वोट्स भी भाटी नहीं खींच पाए जिसका कारण था की कोजा राम प्रकरण में रविंद्र सिंह भाटी ने खुलकर हत्याकर्ता के पक्ष में समाज महा पडाव जैसा आयोजन बाड़मेर में किया था जिसको लेकर एससी वोटर पूरी तरह से नाराज थे जिसका पूरा फायदा कांग्रेस को मिला
दो पूर्व कांग्रेसी विधायकों के साथ के बावजूद भाटी नहीं कर पाए कांग्रेस के वोटर्स में सेंधमारी
कांग्रेस के जिन दो नेताओ को निष्काषित किया हैं उनमे से दोनों (यानी मेवाराम जैन और अमीन खान) का साथ और उनकी मेहनत भी भाटी की ज्यादा मदद नहीं कर पाई अपनी ही विधान सभा से मात्र 1800 वोट की ही लीड ले सके बता दु विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर ने 48000 से भी अधिक वोट अमीन खान को दिया था जिसका रीजन था की वह पार्टी से टिकट लेकर आए थे और लोग पार्टी के सिब्बल के साथ थे वही चुनाव से कुछ दिन पहले ही जयपुर में पार्टी के बड़े नेताओं के बीच पार्टी से बागी होकर चुनाव लड़े पूर्व जिला अध्यक्ष फतेह खान को जेसे ही वापिस पार्टी ज्वाइन करवाई ये बात अमीन खान को रास नहीं आया और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय के पक्ष में चुनाव प्रचार में अमीन खान उतर गया जिसके बाद चुनाव संपन्न होने के तुरंत बाद पार्टी ने 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया जिसके बाद अमीन खान ने अपनी ताकत दिखाने के लिए पुर जोर किया पर मुस्लिम वोटर को नहीं रिजा सके जिसका नतीजा ये रहा की मुस्लिम समुदाय के वोट एकल तरफा वोट कांग्रेस के खाते में गए
वरदान साबित हुआ सोशल मीडिया ही भाटी के लिए अभिशाप साबित हुआ
सोशल मीडिया पर भाटी की बहुत मजबूत छवि हैं और इससे भाटी को वोटो में काफी इज़ाफ़ा भी हुआ। लेकिन सोशल मीडिया काफी अनियंत्रित हैं ,कुछ फ्रिंज एलिमेंटस ने जातिवाद का जहर घोलना शुरू किया ,जिससे दो प्रमुख समाजो के बीच खाई बढ़ती गयी। जिससे एक समाज ने भाटी के विरोध में जमकर वोट्स किया।
भाटी की आतुरता से उनके समाज के नेताओ में नाराजगी
हाल ही में विधायक बने भाटी ने विधायक होने के बावजूद लोकसभा का चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। जिसकी तैयारी के लिए उन्हें बहुत कम समय मिला। इनकी आतुरता देख इनके समाज के ही बरसो से मेहनत कर रहे कुछ नेता इनसे काफी नाराज थे। उनकी नाराजगी वोटो में भी देखने को मिली राजपूत समाज के कही बड़े नेताओं ने मिलकर रविंद्र सिंह भाटी को वोट ना देकर बीजेपी की तरफ यादा रहे और मूल ओबीसी के भी वोट बीजेपी की तरफ यादा रुख रहा जिसका नतीजा ये रहा की कैलाश चौधरी 282240 वोट लेकर कांग्रेस के लिए काम कर गया वही सबसे बड़ा फैक्टर ये रहा की जाटों के वोट एकल तरफा पड़ना और ओबीसी और एससी ने मिलकर कांग्रेस के लिए उस जड़ी बूटी का काम किया जो एक लाख से भी अधिक वोट से कांग्रेस जीत गया
Author: Hakam Bandasar
रिपोर्टर दैनिक भास्कर बाड़मेर