भगार वाले बाबा कोन थे क्या था असली नाम
बाड़मेर के चौहटन क्षेत्र से प्रताप राम नाम का एक व्यक्ति जिसकी पत्नी की 12 साल पहले मौत हो गई थी
फिर प्रतापा राम को उनके बहू बेटों ने परेशान करके घर से निकाल दिया
फिर प्रताप राम ने घुमंतू जीवन जीना शुरु किया उन्होंने एक रेकड़ी लारी को अपना घर बनाया उसमें ही अपना खाना पीना और रहने का सिस्टम सेट किया और घूमते रहते थे भंगार खरीदने बेचते और अपना जीवन यापन करते
दुनियादारी के तानों और दुखों को सहन करते रहते
इन सब के बीच में एक व्यक्ति ने इनका मजाकिया अंदाज में सहायता करने का बहाना बनाकर वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दिया उसके बाद बाबा के देशी अंदाज में बोले गए दुखभरे शब्द जैसे डायलॉग भंगार लेनो है थारे हमारे समाज को पसंद खूब आया सोसल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ और कुछ अनैतिक तत्वों व इंस्टाग्राम के कीड़ों के द्वारा परेशान किया गया
जीना मुश्किल कर दिया था बाबा का इन लोगों ने छोटे-बड़े बुजुर्ग महिला सभी लोगों ने इनको परेशान किया हर फेसबुकिया और इंस्टाग्राम पर रील बनाने वालो ने खूब परेशान किया और हर वक्त परेशान होने से बाबा ने अपनी लारी पर कुछ पथरो का इंतजाम किया जेसे कोई रील के मुंड में आता बाबा उसके पीछे पत्थर लेकर पड़ जाता ऐसा लगभग 2 महीनो तक चलता रहा आखिर बाबा जब है से यादा परेशान हुए तो सिर्फ एक बात ही सूजी आत्महत्या कर ली आखरी सांस तक लोग रील बनाते रहे पर बचाने के लिए कोई आगे नही आया
अब बात न्याय की उठी है तो ना कोई नेता सामने आते दिख रहे है ना ही सरकार
चोहटन निवासी प्रताप राम नामक व्यक्ति को ना परिवार ने जीने दिया ना इस संसार ने जीने दिया
अब बात है बाड़मेर जैसलमेर बालोतरा लोकसभा से चुनाव जीते उमेद राम और मजबूती से चुनाव लड़े रविंद्र सिंह भाटी क्या इस बुजर्क बाबा को न्याय दिलवाएंगे
देखते हैं कौन आगे आता है
क्योंकि भंगार वाले इस बाबा प्रताप राम के पास कोई वोट बैंक नहीं है वह एक साधारण परिवार से है और 12 साल पहले पत्नी की मौत के बाद बहु और बेटो ने टॉर्चर किया तो घर छोड़कर वह बीकानेर चले गए वहा इस उम्र में मजदूरी करके अपना पेट पालने लगे थे की रास्ते में कुछ लोग मजाक के मुंड में थे और इतने में बाबा अपनी रेकड़ी लेकर निकले तो उन्हे मदद करने के चक्र में बाबा ने एक डायलॉग बोला जिस में कहा (भगार लेनो है थारे तो जनाब में मदद करने वालो ने कहा आपकी बाबा मदद करे क्या तो बाबा बोले मदद करो तो गाड़ी दे दो) ये देशी भाषा में डायलॉग इतना ट्रेंडिंग हुआ की उसके बाद जिसने भी देखा बाबा को रील बनाने के बिना नहीं छोड़ा इस से उसके दैनिक धंधे और असर पड़ने लगा तो बाबा ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए लोगो से दूर रहने के लिए सोचा पर फिर भी लोग नही माने तो पत्थर साथ में रखकर चले और जो रील बनाने आता उसके पीछे पड़ जाता पत्थर लेकर फिर चलते चलते परेशान हुआ तो आखिर समय में वही फांसी खाकर आत्महत्या कर ली अब सवाल है न्याय का की इस बाबा को परिवार ने तो वैसे भी जीने नही दिया पर समाज ने भी एक चलते फिरते बाबा को मौत के घाट उतार दिया
Author: Hakam Bandasar
रिपोर्टर दैनिक भास्कर बाड़मेर