बच्चों में बढ़ता मोबाइल एडिक्शन वर्चुअल ऑटिज्म का खतरा और समाधान
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हाकम बांडासर | बाड़मेर
आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसके अत्यधिक इस्तेमाल से बच्चों में मोबाइल एडिक्शन की गंभीर समस्या उभर रही है। जोधपुर एम्स के मनोचिकित्सा विभाग में हर हफ्ते ऐसे 4-5 बच्चे मोबाइल की लत से परेशान होकर इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अनियंत्रित स्क्रीन टाइम बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म जैसी मानसिक समस्याओं को जन्म दे सकता है।
इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए एम्स जोधपुर ने बिहेवियरल एडिक्शन क्लीनिक शुरू किया है, जहां काउंसलिंग, मनोवैज्ञानिक थैरेपी और दवाइयों के माध्यम से बच्चों का इलाज किया जा रहा है। विभागाध्यक्ष डॉ. नरेश नेभीनानी का कहना है कि माता-पिता की सुविधा के लिए दिए गए मोबाइल फोन से ही बच्चों में यह गंभीर लत लग रही है।
बच्चों के लिए सही स्क्रीन टाइम कितना हो?
एम्स के सहायक आचार्य डॉ. विजय कुमार सैनी के अनुसार, बच्चों और युवाओं को मोबाइल के अनियंत्रित उपयोग से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और इंडियन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने स्क्रीन टाइम की कुछ सीमाएं तय की हैं:
1 साल तक के बच्चे → कोई स्क्रीन टाइम नहीं (0 घंटे)
2 से 4 साल तक → 1 घंटे से कम
5 से 10 साल तक → अभिभावक की देखरेख में 2 घंटे से कम
10 से 18 साल तक → स्क्रीन टाइम को आउटडोर गेम्स, स्कूल वर्क, नींद (8-9 घंटे) और फैमिली टाइम के हिसाब से संतुलित करना चाहिए
मोबाइल एडिक्शन के लक्षण कैसे पहचानें?
अगर आपका बच्चा इन संकेतों को दिखा रहा है, तो उसे मोबाइल की लत लग सकती है:
✔ मोबाइल का उपयोग धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और बच्चा बार-बार इसकी मांग करता है।
✔ होमवर्क, स्टडी, खेलकूद से ज्यादा मोबाइल को प्राथमिकता देना।
✔ हर समय मोबाइल के बारे में सोचना, बातें करना, या उसके लिए झगड़ना।
✔ मोबाइल न मिलने पर गुस्सा, रोना, चिड़चिड़ापन, धमकाना या तोड़फोड़ करना।
मोबाइल एडिक्शन को कैसे कम करें?
मनोचिकित्सकों और बाल विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों में मोबाइल की लत को कम करने के लिए माता-पिता को निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए:
1. माता-पिता खुद बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें
बच्चे बड़ों को देखकर सीखते हैं। अगर माता-पिता खुद मोबाइल का अत्यधिक उपयोग करते हैं, तो बच्चे भी इसे आदत बना लेंगे। इसलिए जरूरी है कि माता-पिता खुद भी मोबाइल का प्रयोग नियंत्रित करें।
2. स्क्रीन टाइम के लिए सख्त नियम बनाएं
बच्चों के लिए मोबाइल उपयोग का समय तय करें। उदाहरण के लिए, पढ़ाई के दौरान या रात के समय मोबाइल पूरी तरह से बंद रखें।
3. स्क्रीन टाइम कंट्रोल फीचर्स का उपयोग करें
मोबाइल में पैरेंटल कंट्रोल फीचर्स और स्क्रीन टाइम मैनेजमेंट ऐप्स का इस्तेमाल करें ताकि बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित किया जा सके।
4. नोटिफिकेशन बंद करें
मोबाइल की लगातार आने वाली नोटिफिकेशन बच्चों का ध्यान आकर्षित करती हैं। इसलिए गेम्स और सोशल मीडिया की नोटिफिकेशन बंद कर दें।
5. नो-मोबाइल जोन बनाएं
घर में कुछ स्थानों को नो-मोबाइल जोन घोषित करें, जैसे कि डाइनिंग टेबल, बेडरूम, स्टडी रूम आदि, ताकि बच्चे बिना मोबाइल के भी समय बिता सकें।
6. आउटडोर गेम्स और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा दें
बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के लिए उन्हें खेल-कूद, योग, पेंटिंग, डांसिंग, बुक रीडिंग जैसी एक्टिविटीज में शामिल करें।
7. बच्चों के साथ समय बिताएं
परिवार के साथ बिताया गया समय बच्चों की मानसिक और भावनात्मक सेहत के लिए बहुत जरूरी है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ बातचीत करें, कहानियां सुनाएं और आउटडोर एक्टिविटीज में भाग लें।
8. मोबाइल का उपयोग केवल आवश्यक कार्यों के लिए करें
मोबाइल को केवल पढ़ाई, एजुकेशनल वीडियोज, ऑनलाइन क्लासेज और रिसर्च के लिए इस्तेमाल करें। गैर-जरूरी मनोरंजन के लिए इसे सीमित करें।
बढ़ते मोबाइल एडिक्शन से बच्चों को कैसे बचाएं?
मोबाइल की लत से बचाने के लिए कई अस्पताल और संस्थान मोबाइल डी-एडिक्शन क्लीनिक चला रहे हैं। उदाहरण के लिए, एम्स जोधपुर के बिहेवियरल एडिक्शन क्लीनिक में काउंसलिंग और मनोवैज्ञानिक थैरेपी से बच्चों का इलाज किया जा रहा है।
डॉक्टरों का कहना है कि अगर माता-पिता समय रहते सचेत नहीं हुए, तो बच्चों को गंभीर मानसिक समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें वर्चुअल ऑटिज्म, आई स्ट्रेन, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन जैसी बीमारियां शामिल हैं।
निष्कर्ष
मोबाइल एडिक्शन बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को प्रभावित कर रहा है। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाली पीढ़ी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ सकती है। माता-पिता की जागरूकता और सतर्कता ही बच्चों को इस लत से बचाने का सबसे बेहतर उपाय है।
इसलिए, अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को डिजिटल दुनिया में खोने से पहले उन्हें बचाएं और उन्हें स्वस्थ, खुशहाल और संतुलित जीवन जीने की दिशा में आगे बढ़ाएं।